
दिनांक 29 अक्टूबर को माननीय जस्टिस अजीत कुमार और माननीय जस्टिस स्वरूपमा चतुर्वेदी की पीठ ने फैसला सुनाया कि एक पुलिस अधिकारी धारा 106 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (बी एन एस एस) के अंतर्गत आदेश करके, जांच के दौरान आरोपी व्यक्तियों की संपत्ति जब्त कर सकता है। पुलिस को ऐसी जब्ती की रिपोर्ट संबंधित मजिस्ट्रेट को देना भी ज़रूरी है।
संक्षिप्त तथ्य-
याचिकाकर्ता का पक्ष-
याचिकाकर्ता सखाधा, ब्लॉक मूरतगंज, जिला कौशांबी के प्राथमिक विद्यालय में शिक्षामित्र (शिक्षक) हैं। याचिकाकर्ता की सैलरी बैंक ऑफ बड़ौदा, इमामगंज शाखा, मूरतगंज में उनके बचत खाते में जमा होती है। दिनांक 01.09.2022 को फेडरल बैंक, पुथियारा शाखा (गुजरात) के खाते से इस अकाउंट में 35,000/- रुपये जमा किए गए। इसके बाद, प्रतिवादी बैंक ने याचिकाकर्ता का खाता निष्क्रिय कर दिया। पूछताछ करने पर पता चला कि प्रतिवादी बैंक के अधिकारियों ने याचिकाकर्ता को मौखिक रूप से बताया कि 35,000/- रुपये मुश्ताक अली नाम के एक व्यक्ति ने अंतरित किए थे और आनंद साइबर क्राइम ब्रांच, गुजरात पुलिस ने इस संव्यवहार के संबंध में बैंक को याचिकाकर्ता का अकाउंट ब्लॉक करने का निर्देश दिया था। याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी बैंक में प्रार्थना-पत्र देकर कहा कि वह उस व्यक्ति को नहीं जानती जिसने धन अंतरित किया हैं, और न ही उसका कथित संव्यवहार से कोई लेना-देना है। उसने बैंक से याचिकाकर्ता का खाता खोलने का अनुरोध किया। उसने बैंक के अधिकारियों से भी संपर्क किया और खाते को पुनः सक्रिय करने का अनुरोध किया।
प्रतिवादी का पक्ष-
बैंक का कहना था कि याचिकाकर्ता का खाता गुजरात के आनंद में साइबर क्राइम विभाग के निर्देश पर निष्क्रिय किया गया था। बैंक साइबर क्राइम विभाग की पहले से मंज़ूरी या सक्षम कोर्ट के आदेश के बिना खाते को सक्रिय नहीं कर सकता, क्योंकि मामला अभी भी अन्वेषण में है और संबंधित खाते की भी जांच चल रही है।
राज्य-प्रतिवादियों की ओर से पेश हुए विद्वान एडिशनल चीफ स्टैंडिंग काउंसिल ने रिट याचिका में मांगी गई राहत का विरोध किया और कहा कि जहां किसी बैंक ने चल रही जांच के संबंध में किसी खाते को निष्क्रिय कर दिया है, वहां मुख्य बात यह है कि क्या खाते को निष्क्रिय करने का निर्देश देने वाले अधिकारी ने भारतीय न्याय सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 106 (जो आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 102 के समान है) के अंतर्गत समाविष्ट प्रक्रिया के अनुसार काम किया है। उन्होंने तीस्ता अतुल सीतलवाड़ बनाम गुजरात राज्य (2018) 2 SCC 372 मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को संदर्भित किया , जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यदि संबंधित अधिकारी ने धारा 102 Cr.P.C. (वर्तमान धारा 106 BNSS) में बताए गए प्रोसीजर का पालन किया है, तो बैंक द्वारा खाते को फ्रीज करना कानूनी रूप से सही है। उन्होंने आगे कहा कि ऊपर बताया गया संव्यवहार जांच एजेंसी की नज़र में संदिग्ध है।
मांगा गया उपचार-
यह याचिका भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत दायर की गई थी, जिसमें याचिकाकर्ता के बैंक अकाउंट को प्रतिवादी बैंक द्वारा फ्रीज़ करने के खिलाफ कार्रवाई की गई थी। इसमें यह प्रार्थना की गई थी कि मैंडमस के रूप में एक रिट जारी की जाए, जिसमें रेस्पोंडेंट बैंक (रेस्पोंडेंट नंबर 5) को बैंक ऑफ बड़ौदा, ब्रांच इमामगंज, मूरतगंज, जिला-कौशांबी के सेविंग अकाउंट नंबर 433901000* को सक्रिय करने और याचिकाकर्ता को अपने उपरोक्त अकाउंट से पैसे निकालने की अनुमति देने का निर्देश दिया जाए।
न्यायालय का निष्कर्ष-
सुप्रीम कोर्ट के तीस्ता अतुल सेतलवाड़ बनाम गुजरात राज्य (2018) 2 SCC 372 मामले में दिए गए निर्णय के आधार पर, कोर्ट ने फैसला सुनाया कि, अगर जांच के दौरान पुलिस को लगता है कि किसी संदिग्ध ट्रांजैक्शन के लिए बैंक अकाउंट फ्रीज़ करना है, तो वह बैंक को ऐसे बैंक अकाउंट को फ्रीज़ करने का निर्देश दे सकती है। और हां, अकाउंट फ्रीज़ करना जांच के नतीजे पर निर्भर करेगा। प्रभावित पक्ष, जांच पूरी होने के बाद और अगर चार्जशीट फाइल हो जाती है, तो संबंधित मजिस्ट्रेट से अकाउंट फ्रीज़ करने को सिर्फ़ शामिल रकम तक सीमित करने की मांग कर सकता है।
कोर्ट ने आगे कहा कि ऊपर बताए गए प्रावधान को सिर्फ़ पढ़ने से यह स्पष्ट है कि एक पुलिस अधिकारी जांच के दौरान आदेश पारित करके आरोपी व्यक्तियों की संपत्ति ज़ब्त कर सकता है और उसका एकमात्र दायित्व यह है कि वह ऐसी ज़ब्ती की रिपोर्ट संबंधित मजिस्ट्रेट को दे। संपत्ति ज़ब्त करने के लिए पुलिस पर मजिस्ट्रेट से पहले से अनुमति लेने की कोई बाध्यता नहीं है।
[Marufa Begum vs. Union Of India And 5 Others;WRIT- C No.- 37053 of 2025]
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